कड़वी लघुकथा-1
बेटा आ पतोह कS सेवा
सहर में काम करे वाला लइका क बियाह क बाद माई-बाबू कहलें- पतोह
के कुछ दिन हमनिए केहें रहे दS बेटा।
बेटा कहलें- ठीक बा।
आ फिर उ सहर चल गइलें।
06 महीना बाद जब उ वापस अइलें त उ आपन मेहरारू के सहर ले जाए
के बात फिर से चलवलें।
माई-बाबू कहलें- तोरा के 20 साल पलनी-पोसनी जा त कुछ साल त
एकराके हमनीकS सेवा करे दे।
अब लइका से रहल न गइल- उ कहलें- ई बियाह कके हमार मेहरारू बSनके आइल
बिया कि तोहन लोग के नोकरानी। हमरा के पालला-पोसला क एहसान क बदला एकरा से काहे लेत
बानीSजा। त फिर हमहूँ एहिजे रह जात बानी, दूनो परानी मिल के सेवा कSरेके।
सीख : लइका क सेवा कइला क बदले पतोह से सेवा करावे खातिर सोचला
से पहिले इहोS देख लेव कि एकरा चलते उन्हन के अलगा ना रहे के परे। 25-26 साल में जेकर बियाह
हो रहल बा, ओहू क त कुछ अरमान होई।
आदर्स ना यथार्थ सोचीं।
बेटे और बहू की सेवा
शहर में काम करने वाले बेटे की शादी के बाद माता पिता ने
कहा- बहु को कुछ दिन हमारे ही पास रहने दो,बेटा।
बेटे ने कहा- ठीक है।
और फिर शहर चला गया।
6 महीने बाद जब वह वापस आया तो उसने अपनी दुल्हन को शहर ले
जाने प्रस्ताव फिर से रखा।
माता पिता ने कहा- तुझे 20 साल पाला पोसा तो कुछ साल इसे हमारी सेवा करने
दे।
अब बेटे से रहा नहीं गया, वह बोला- यह शादी करके मेरी पत्नी बनने आई है आप लोगों की सेविका? मुझे पालने पोसने के एहसान का बदला इससे क्यों ले रहे हैं? तो फिर मैं भी यहीं रह जाता हूँ। दोनों लोग मिलकर सेवा करेंगे......
शिक्षा : बेटे की सेवा के बदले बहू से सेवा कराने के लिए
सोचने से पहले यह भी देखें कि इस कारण उन्हें अलग न रहना पड़े। 25-26 साल जिसकी
शादी हो रही है, उसके भी तो कुछ अरमान होंगे।
आदर्श नहीं यथार्थ सोचें।
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