Wednesday, October 11, 2017

आदमी क खुराफात आ परकिर्ति क नियति (मनुष्य के खुराफात और प्रकृति की नियति)

लघुकथा-3
आदमी क खुराफात आ परकिर्ति क नियति
आज आदमी एतना खुरफाती हो गइल बा। उ परकिर्ति के तहस-नहस क घलले बा। परकिर्ति ओकरा के बुद्धि देके बहुत बड़ियार गलती क देले बिया, आ आज उ एकर खमियाजा भोगतिया। एपर चिंता क मुद्रा में जोंस बड़ा बेचारा क नजर से जिल ओरि देखलें।
जिल बड़ा आराम से कहलें- ना जी, अइसन कवनो बात नइखे। आदमी भी त परकिर्तिए क एगो उत्पाद बा। आज हमनीकS ब्रह्मांड क बारे में जेतना जान चुकल बानीजाS, ओहमें कतहीं जीवन नइखे मिलल। धरती प भी आदमी जइसन कवनो दूसर जीव ना बन पाइल, काहे?
जोंस- तू ही बतावS
 जिल- परकिर्ति बहुत सोच-समझ के अदमी के बनवले बा। पुरातात्विक खोजन से पता चल चुकल बा एह धरती प दू बेर परलय आइल आ धरती क जीवजगत एकही बेर में खतम हो गइल। लेकिन जीवन धीरे-धीरे फिर से पनफल आ आज एइसन बा। एसे झटका से नस्ट होखे में धरती/परकिर्ति के मजा ना आइल, एहसे, ए बारी उ सोचले बिया कि अपन रचना-संसार में ही अइसन चीज बनावल जाय जवन पूरा पर्यावरन के लाहे-लाहे खतम करे। एह परकार से अदमी के बनवलस आ आज अदमी ऊहे कर रहल बा। एहसे अदमी के खुराफात परकिर्ति क नियति क चलते ही हो रहल बा।
मनुष्य के खुराफात और प्रकृति की नियति
आज मनुष्य इतना खुराफाती हो गया है। उसने प्रकृति को तहस-नहस कर दिया है। प्रकृति ने उसे बुद्धि देकर बहुत बड़ी गलती कर दी, और आज वह इसका खामियाजा भुगत रही है। इस पर चिंता व्यक्त करते हुए जोंस ने बड़ी बेचारगी से जिल की ओर देखा।
जिल ने बड़ी सरलता से कहा- जी नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। मनुष्य भी तो प्रकृति की एक उत्पाद है। आज हम ब्रह्मांड के बारे में जितना जान चुके हैं, उसमें कहीं भी जीवन प्राप्त नहीं होता। पृथ्वी पर भी लाखों प्रकार के जीवों में मनुष्य जैसा कोई भी नहीं बन सका, क्यों?
जोंस- तुम्हीं बताओ।

जिल- प्रकृति ने बहुत सोच-समझ कर मनुष्य का निर्माण किया है। पुरातात्विक खोजों से पता चल चुका है कि इस पृथ्वी पर दो बार प्रलय आए और पृथ्वी का जीवजगत एक झटके में खत्म हो गया। किंतु जीवन फिर धीरे-धीरे पनपा और आज इस अवस्था में है। अतः झटके से नष्ट होने में पृथ्वी/प्रकृति को मजा नहीं आया, इसलिए इस बार उसने सोचा कि अपनी रचनाओं में ही एक ऐसी चीज बनाई जाए जो संपूर्ण पर्यावरण को धीरे-धीरे नष्ट करे। इस प्रकार उसने मनुष्य को बनाया और आज मनुष्य वही कर रहा है। इसलिए मनुष्य के खुराफात प्रकृति की नियति के ही परिणाम हैं।

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