लघुकथा-7
बाबागिरी
जजमान कS देहल दक्षिना झोरा में ठूँसके दूनों हाथ से
जजमान के आसिर्वाद दिहला कS बाद पंडीजी आज कS हालत पर बिचार ब्यक्त करत कहलें – अब बाबा लोगन के बाबागिरी छोड़ देबे के चाहीं।
ई सुनके जजमान क लइका बोल परले- रऊवाँ कब छोड़ब?
पंडीजी धीरे से सरकहवा नारा लगइलें आ लइका के प्रस्न जबाब में
दू थपरा मिलल।
बाबागिरी
यजमान द्वारा दी गई दक्षिणा को झोले में ठूँसकर दोनों हाथों
से यजमान को आशिर्वाद देने के बाद पंडित जी आज के हालात पर विचार व्यक्त करते हुए बोले-
अब बाबाओं को बाबागिरी छोड़ देनी चाहिए।
यह सुनकर यजमान का बेटा बोल पड़ा- आप कब छोड़ेंगे?
पंडित जी चुपचाप चलते बने और बेटे को प्रश्न के उत्तर में दो
थप्पड़ मिले।
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