(26-09-2017)
धर्म के अंधभक्त और कुछ प्रश्न-1
धर्म के अंधभक्त और कुछ प्रश्न-2
दुर्गा पूजा और मोहर्रम से शुरू हुई चर्चा का समापन धर्म के तार्किक परिष्कार पर खत्म हो जानी चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि धर्म अब केवल दिखावे का साधन रह गया है। यह आंडबर के साथ-साथ कुछ लोगों के लिए तो हिंसा का माध्यम भी बन चुका है। आज यदि हिंदू त्यौहारों को देखें तो पूजा के नाम पर भारी-भारी पांडाल लगाए लोगों में से कोई भी व्यक्ति एक भी दिन शांति से बैठकर ध्यानमग्न होकर ईष्ट देव (दुर्गा या कोई और देवी-देवता) का आह्वान करने का प्रयास करते हुए नहीं दिखता। बस लाउडस्पीकर में गाने बज रहे हैं और भक्तिधारा बह रही है। अब यहाँ तक कि ‘ऊँ नमः शिवाय’ और गायत्री मंत्र जैसे दिव्य मंत्र को भी लोग कैसेट लगाकर छोड़ रहे हैं और मशीन पों-पों कर रही है। इतने भारी-भारी पांडाल, इतनी बड़ी भक्त-मंडली में किसी के पास समय नहीं है कि बारी-बारी से एक-एक घंटा ही सही बैठकर स्वयं जाप किया जाए। नहीं कर सकते तो गाने ही बजाते, बेकार में मंत्र की बेइज्जती क्यों कर रहे हैं। मुझे लगा था किसी सजग हिंदू आचार्य या संगठन द्वारा इस पर आपत्ति की जाएगी, लेकिन किसी को चिंता नहीं है। आप खुद बैठकर सोचें कि क्या ये मंत्र इस तरह अपमानित होने के लिए बने थे?? मशीन से बजाकर लोग कौन-सी सिद्धि पा लेंगे????
धर्म के अंधभक्त और कुछ प्रश्न-2
दुर्गा पूजा और मोहर्रम से शुरू हुई चर्चा का समापन धर्म के तार्किक परिष्कार पर खत्म हो जानी चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि धर्म अब केवल दिखावे का साधन रह गया है। यह आंडबर के साथ-साथ कुछ लोगों के लिए तो हिंसा का माध्यम भी बन चुका है। आज यदि हिंदू त्यौहारों को देखें तो पूजा के नाम पर भारी-भारी पांडाल लगाए लोगों में से कोई भी व्यक्ति एक भी दिन शांति से बैठकर ध्यानमग्न होकर ईष्ट देव (दुर्गा या कोई और देवी-देवता) का आह्वान करने का प्रयास करते हुए नहीं दिखता। बस लाउडस्पीकर में गाने बज रहे हैं और भक्तिधारा बह रही है। अब यहाँ तक कि ‘ऊँ नमः शिवाय’ और गायत्री मंत्र जैसे दिव्य मंत्र को भी लोग कैसेट लगाकर छोड़ रहे हैं और मशीन पों-पों कर रही है। इतने भारी-भारी पांडाल, इतनी बड़ी भक्त-मंडली में किसी के पास समय नहीं है कि बारी-बारी से एक-एक घंटा ही सही बैठकर स्वयं जाप किया जाए। नहीं कर सकते तो गाने ही बजाते, बेकार में मंत्र की बेइज्जती क्यों कर रहे हैं। मुझे लगा था किसी सजग हिंदू आचार्य या संगठन द्वारा इस पर आपत्ति की जाएगी, लेकिन किसी को चिंता नहीं है। आप खुद बैठकर सोचें कि क्या ये मंत्र इस तरह अपमानित होने के लिए बने थे?? मशीन से बजाकर लोग कौन-सी सिद्धि पा लेंगे????
अंतिम बात यही है
कि धर्म को जितना हो सके, तार्किक बनाइए। यदि किन्हीं कारणों से
इसमें कुछ बुराइयों या आडंबरों का प्रवेश हो गया है तो उसे दूर कीजिए और धर्म का
परिष्कार कीजिए। तभी यह लंबे समय बना रहेगा और शिक्षित लोगों द्वारा भी ग्राह्य
होगा। यदि आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो इस शृंखला की पहली पोस्ट में सुरेंद्र की
टिप्पणी से आपको चेतावनी देता हूँ कि धर्म में तर्क नहीं आएगा तो आशाराम, राम रहीम, रामपाल और फलाहारी राम आते रहेंगे, क्योंकि आप भी कहते हैं कि तर्क मत चुपचाप मान लो और वे भी कहते हैं कि
तर्क मत करो और चुपचाप मान लो। फैसला आपके हाथ में हैं। इस पर बस एक उदाहरण देना
चाहूँगा कि ‘मदर टेरेसा’ द्वारा
दीन-दुखियों की इतनी सेवा निष्काम तथा समर्पण भाव से की गई। लोग उन्हें संत मानने
लगे, लेकिन ईसाई समुदाय द्वारा उनकी मृत्यु के कई साल बाद
काफी छानबीन के बाद ‘संत’ की उपाधि दी
गई। हमारे यहाँ क्या होता है? गेरुए रंग का कपड़ा पहना, टीका लगाया, कंठी माला पहनी और हो गए बाबा जी.....।
क्या आपको नहीं लगता है कि जो लोग बड़े-बड़े पांडाल लगाकर अचानक से माता रानी के
भारी भक्त दिखने लगते हैं, उनके संदर्भ में यह भी देखा जाए
कि बाकी दिनों में भक्ति कार्यों में कितने लगे रहते हैं? यह
भी देखा जाए कि धार्मिक मामलों में उनकी जानकारी और रुचि कितनी है???
यही बात मुस्लिम
धर्म के कार्यक्रमों के आयोजकों के लिए भी जरूरी है। अगर किसी धर्म को अपने
धार्मिक आयोजकों के प्रति ऐसी आवश्यकताएँ नहीं महसूस हो रही हैं तो पक्का मान
लीजिए कि वहाँ भक्ति अंधभक्ति में बदल चुकी है। अगर लगता है कि हमें ऐसा करना
चाहिए तो फिर इसका रास्ता सोचना होगा, जो धर्म
को केवल धर्म रहने दे, अंधभक्ति और उन्माद में न बदल दे। यदि
वह रास्ता मिल गया तो दुर्गा पूजा विसर्जन और मोहर्रम के लिए पुलिस को अलग-अलग
रास्ते नहीं बनाने पड़ेंगे, बल्कि एक ही रास्ते से दोनों
समुदाय के लोग बिना किसी भय के शांतिपूर्वक निकल जाएँगे और दुनिया हमें परिपक्व
समझने लगेगी।
आज इस्लाम और अल्लाह
के नाम पर मुस्लिम जगत में ऐसी बहुत सी चीजें हो रही हैं, जिससे आम मुसलमानों को भी बेवजह परेशानियों का सामना करना पड़ रहा
है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को तो बहुत हद तक राजनीतिक मामला कहा जा सकता है।
पाकिस्तान और बंग्लादेश में अल्पसंख्यकों के हुए सामूहिक नरसंहार को भी कुछ हद तक ऐतिहासिक
बताकर बचने की कोशिश की जा सकती है। लेकिन ईराक और सीरिया में आई.एस.आई.एस. द्वारा
प्रायोजित आंतकवाद और अल्पसंख्यक यजीदियों के साथ क्रूरतम व्यवहार आज आपके जगत का सबसे
बड़ा धब्बा है। आज संपूर्ण इस्लामिक जगत की ओर से ‘जियो और जीने
दो’ के नारे के साथ अपने देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और
स्वतंत्रता बनाए रखने का नारा आना चाहिए। रोहिंग्या मुसलमानों को बेचारे की नजर से
देखा जा रहा है, आज उनकी हालत पर किसे दया नहीं आएगी, लेकिन अभी हाल ही में म्यांमार की सेना ने उसी रखाइन इलाके में हिंदुओं की
दो-दो सामूहिक कब्रें दिखाकर सनसनी पैदा कर दी है। आरोप है कि इन जगहों पर रोहिंग्या
आंतकवादियों द्वारा हिंदुओं के नरसंहार के बाद दफनाया गया है। आज (26-09-2017 को) शाम
09:00 बजे Daily News Analysis में जी. न्यूज द्वारा म्यांमार
से शरणार्थी बनकर आए लगभग 650 हिंदू परिवारों से बातचीत करके इस दावे को मजबूत किया
गया। यदि यह सच है तो आप खुद सोचिए कि अब रोहिंग्या मुसलमान किस मुँह से भारत में शरण
माँगेंगे। अब इस बात की सख्त जरूरत है कि इस्लामिक जगत के लोग ही आगे आएँ और संयुक्त
राष्ट्र से इस मामले की निष्पक्ष जाँच करने की अपील करें। या तो म्यामांर सेना का झूठ
सामने आ जाएगा या रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति भारत सरकार की बात सही हो जाएगी। नहीं
तो हिंदू समुदाय इनसे यह सोचकर भयभीत महसूस करेगा कि अल्पसंख्यक होने पर भी ये मौका
मिलते ही हमारे लिए घातक हो सकते हैं। यदि ऐसा नहीं होता है तो याद रहे चाहे विकास
आए या ना आए, यह भय ही काफी है भाजपा को अगले 02-04 चुनाव जिताने
के लिए।