डॉ. धनजी प्रसाद
भाषा क्या है और मानव मस्तिष्क में यह किस रूप में है? ये दोनों प्रश्न हमारे लिए उतने ही महत्वपूर्ण और जिज्ञासा उत्पन्न करने वाले हैं। इसकी वास्तविक स्थिति के बारे में किसी को भी पूरी तरह नहीं पता। इस पर निम्नलिखित दृष्टियों से विचार किया जा सकता है-
1.
भौतिक रूप में भाषा : भाषा को भाषावैज्ञानिकों द्वारा यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था कहा गया है। जब भाषा एक व्यवस्था है तो यह निश्चय ही अमूर्त होगी। इसलिए भाषा को भौतिक रूप से प्राप्त नहीं किया जा सकता। भाषा को वाचिक रूप में रिकार्ड करके उसकी ध्वन्यात्मक सामग्री को प्राप्त किया जा सकता है, इसी प्रकार लिखित भाषा के पाठों का भी संग्रह किया जा सकता है, किंतु ये दोनों ही प्रकार के संग्रह भाषा नहीं हैं, बल्कि भाषाई सामग्री के संकलन मात्र हैं।
अतः यह प्रश्न ज्यों का त्यों रह जाता है कि भौतिक रूप से भाषा क्या है? इसके उत्तर स्वरूप इतना ही कहा जा सकता है कि चूँकि भाषा एक अमूर्त व्यवस्था है, इसलिए इसका भौतिक अस्तित्व नहीं है। अब एक और प्रश्न उठता है कि भाषा रहती कहाँ है? इसके दो प्रकार के उत्तर प्राप्त होते हैं- व्यवहारवादी और मनोवादी। व्यवहारवादियों के अनुसार भाषा मानव समाज में पाई जाती है और मनोवादियों के अनुसार भाषा मानव मस्तिष्क में पाई जाती है। इनमें से यदि मस्तिष्क के संदर्भ में देखें तो भौतिक रूप से मानव मस्तिष्क के ब्रोका (Broca) और वरनिके (Wernicke) क्षेत्रों को भाषा उत्पादन और भाषा बोधन हेतु चिह्नित किया गया है।
2.
मानव मन में भाषा : ‘मन’ एक भ्रामक शब्द है, जिसके बारे में यह नहीं पता कि यह मनुष्य में कहाँ पाया जाता है और यह कैसे काम करता है? फिर भी हम किसी भी बात में बोल देते हैं कि मेरा यह करने का मन कर रहा है, या ऐसा करने का मन नहीं कर रहा है। वास्तव में भौतिक रूप से मन की भी कोई सत्ता नहीं है। ‘मन’ एक व्यावहारिक इकाई है। यह मस्तिष्क में होने वाली क्रिया-प्रतिक्रिया के केंद्र का समेकित नाम है। मस्तिष्क एक भौतिक वस्तु है जिसे हम देख सकते हैं, किंतु उसके अंदर भिन्न-भिन्न प्रकार की क्रियाएँ कहाँ और कैसे होती हैं, यह हमें नहीं पता। इस लिए जिस स्थान की कल्पना की गई है, वही हमारा मन है। चूँकि मन में सभी मस्तिष्कीय क्रिया से संबंधित चीजें रहती हैं, इसलिए मान लिया गया कि भाषा भी मानव मन में ही रहती होगी, किंतु जब मन का नहीं कोई अता-पता है तो मन भाषा कैसे रहती होगी।
फिर भी, मन 'भाषा' का आधार है। यह मानव मस्तिष्क के 'ऑपरेटिंग सिस्टम' की तरह कार्य करता है। इसके बिना मस्तिष्क की प्रकार्यात्मकता की कल्पना अधूरी है। अतः अमूर्त रूप से 'मन' भाषा का संचालक है।
फिर भी, मन 'भाषा' का आधार है। यह मानव मस्तिष्क के 'ऑपरेटिंग सिस्टम' की तरह कार्य करता है। इसके बिना मस्तिष्क की प्रकार्यात्मकता की कल्पना अधूरी है। अतः अमूर्त रूप से 'मन' भाषा का संचालक है।
3.
भाषा और मस्तिष्क : मस्तिष्क एक भौतिक इकाई है जिसका स्थान हमारे सिर की खोपड़ी में है। यह करोड़ों न्यूरॉनों का जटिल संजाल है। इसी के सक्रिय होने या निष्क्रिय होने की अवस्था से हमारे जीवित या मृत होने की स्थितिओं का बोध होता है। हमारे शरीर की प्रत्येक क्रिया और अनुक्रिया मस्तिष्क द्वारा ही नियंत्रित होती है। इसी में सभी अमूर्त क्रियात्मक इकाइयाँ भी निहित रहती हैं। अतः हमारी भाषा भी मस्तिष्क में ही निहित है।
मानव मस्तिष्क के मामले में ‘भाषा’ मस्तिष्क में निहित केवल एक इकाई नहीं है, बल्कि यह मस्तिष्क का माध्यम भी है। अर्थात मानव मस्तिष्क इसी कारण इतनी
कुशलतापूर्वक काम कर पाता है कि उसके पास भाषा है। भौतिक रूप से न्यूरॉनों तथा कुछ
अन्य रासायनिक तत्वों का मिश्रण होते हुए भी मस्तिष्क एक इतनी व्यापक इकाई अवश्य है
जिसने मनुष्य को आदिमानव से आधुनिक मानव बना दिया। मानव मस्तिष्क में निम्नलिखित विशेषताएँ
हैं-
(क)
चिंतन
(ख) तर्क
(ग)
गणना
(घ)
कल्पना
(ङ)
नए निष्कर्षों की प्राप्ति
(च)
स्मृति आदि।
इन सभी कार्यों के लिए मस्तिष्क
को किसी-न-किसी रूप में भाषा की आवश्यकता पड़ती है। अतः मानव मस्तिष्क भाषा का आधार
है तो भाषा मानव मस्तिष्क का माध्यम है। दोनों को एक-दूसरे का पूरक समझना गलत नहीं
होगा। यदि भाषा नहीं होती तो मानव मस्तिष्क संभवतः अन्य प्राणियों के मस्तिष्क की तरह
कुछ सामान्य और तात्कालिक कामकाजों के अलावा बहुत कुछ नहीं कर पाता, और आज भी हम जंगल या गुफाओं
में जी रहे होते।