Saturday, December 22, 2018

श्रीनिवास रामानुजन

(Whatsapp से प्राप्त)
श्रीनिवास रामानुजन
 जन्मदिन : 22 दिसंबर
(22.12.1887--26.4.1920)

महान गणितज्ञ

रामानुजन बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है।

रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को मद्रास से 400 किमी दूर इरोड नामक एक छोटे से गांव में हुआ था।

इनकी प्रारंभिक शिक्षा की एक रोचक घटना है। गणित के अध्यापक कक्षा में भाग की क्रिया समझा रहे थे। उन्होंने प्रश्न किया कि अगर तीन केले तीन विद्यार्थियों में बांटे जाये तो हरेक विद्यार्थी के हिस्से में कितने केले आयेंगे? विद्यार्थियों ने तत्काल उत्तर दिया कि हरेक विद्यार्थी को एक-एक केला मिलेगा। इस प्रकार अध्यापक ने समझाया कि अगर किसी संख्या को उसी संख्या से भाग दिया जाये तो उसका उत्तर एक होगा। लेकिन तभी कोने में बैठे रामानुजन ने प्रश्न किया कि, यदि कोई भी केला किसी को न बाँटा जाए, तो क्या तब भी प्रत्येक विद्यार्थी को एक केला मिल सकेगा? सभी विद्यार्थी इस प्रश्न को सुनकर हँस पड़े, क्योंकि उनकी दृष्टि में यह प्रश्न मूर्खतापूर्ण था। लेकिन बालक रामानुजन द्वारा पूछे गए इस गूढ़ प्रश्न पर गणितज्ञ सदियों से विचार कर रहे थे। प्रश्न था कि अगर शून्य को शून्य से विभाजित किया जाए तो परिणाम क्या होगा? भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य ने कहा था कि अगर किसी संख्या को शून्य से विभाजित किया जाये तो परिणाम 'अनन्त' होगा। रामानुजन ने इसका विस्तार करते हुए कहा कि शून्य का शून्य से विभाजन करने पर परिणाम कुछ भी हो सकता है अर्थात् वह परिभाषित नहीं है। रामानुजन की प्रतिभा से अध्यापक बहुत प्रभावित हुए।

प्रारंभिक शिक्षा के बाद इन्होंने हाई स्कूल में प्रवेश लिया। यहाँ पर तेरह वर्ष की अल्पावस्था में इन्होने ‘लोनी’ कृत विश्व प्रसिद्ध ‘त्रिकोणमिति’ को हल किया और पंद्रह वर्ष की अवस्था में जार्ज शूब्रिज कार कृत `सिनोप्सिस ऑफ़ एलिमेंट्री रिजल्टस इन प्योर एण्ड एप्लाइड मैथेमैटिक्स’ का अध्ययन किया। इस पुस्तक में दी गयी लगभग पांच हज़ार प्रमेयों को रामानुजन ने सिद्ध किया और उनके आधार पर नए प्रमेय विकसित किये। इसी समय से रामानुजन ने अपनी प्रमेयों को नोटबुक में लिखना शुरू कर दिया था। हाई स्कूल में अध्ययन के लिए रामानुजन को छात्रवृत्ति मिलती थी परंतु रामानुजन के द्वारा गणित के अलावा दूसरे सभी विषयों की उपेक्षा करने पर उनकी छात्रवृत्ति बंद कर दी गई। उच्च शिक्षा के लिए रामानुजन मद्रास विश्वविद्यालय गए परंतु गणित को छोड़कर शेष सभी विषयों में वे अनुत्तीर्ण हो गए। इस तरह रामानुजन की औपचारिक शिक्षा को एक पूर्ण विराम लग गया। लेकिन रामानुजन ने गणित में शोध करना जारी रखा।

कुछ समय उपरांत इनका विवाह हो गया गया और वे आजीविका के लिए नौकरी खोजने लगे। इस समय उन्हें आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा। लेकिन नौकरी खोजने के दौरान रामानुजन कई प्रभावशाली व्यक्तियों के सम्पर्क में आए। ‘इंडियन मेथमेटिकल सोसायटी’ के संस्थापकों में से एक रामचंद्र राव भी उन्हीं प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे। रामानुजन ने रामचंद्र राव के साथ एक वर्ष तक कार्य किया। इसके लिये इन्हें 25 रू. महीना मिलता था। इन्होंने ‘इंडियन मेथमेटिकल सोसायटी’ की पत्रिका (जर्नल) के लिए प्रश्न एवं उनके हल तैयार करने का कार्य प्रारंभ कर दिया। सन् 1911 में बर्नोली संख्याओं पर प्रस्तुत शोधपत्र से इन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली और मद्रास में गणित के विद्वान के रूप में पहचाने जाने लगे। सन् 1912 में रामचंद्र राव की सहायता से मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के लेखा विभाग में लिपिक की नौकरी करने लगे। सन् 1913 में इन्होंने जी. एम. हार्डी को पत्र लिखा और उसके साथ में स्वयं के द्वारा खोजी प्रमेयों की एक लम्बी सूची भी भेजी।
यह पत्र हार्डी को सुबह नाश्ते के टेबल पर मिले। इस पत्र में किसी अनजान भारतीय द्वारा बहुत सारे प्रमेय बिना उपपत्ति के लिखे थे, जिनमें से कई प्रमेय हार्डी पहले ही देख चुके थे। पहली बार देखने पर हार्डी को ये सब बकवास लगा। उन्होंने इस पत्र को एक तरफ रख दिया और अपने कार्यों में लग गए परंतु इस पत्र की वजह से उनका मन अशांत था। इस पत्र में बहुत सारे ऐसे प्रमेय थे जो उन्होंने न कभी देखे और न सोचे थे। उन्हें बार-बार यह लग रहा था कि यह व्यक्ति या तो धोखेबाज है या फिर गणित का बहुत बड़ा विद्वान। रात को हार्डी ने अपने एक शिष्य के साथ एक बार फिर इन प्रमेयों को देखा और आधी रात तक वे लोग समझ गये कि रामानुजन कोई धोखेबाज नहीं बल्कि गणित के बहुत बड़े विद्वान हैं, जिनकी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाना आवश्यक है। इसके बाद हार्डी और रामानुजन में पत्रव्यवहार शुरू हो गया। हार्डी ने रामानुजन को कैम्ब्रिज आकर शोध कार्य करने का निमंत्रण दिया। रामानुजन का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। वह धर्म-कर्म को मानते थे और कड़ाई से उनका पालन करते थे। वह सात्विक भोजन करते थे। उस समय मान्यता थी कि समुद्र पार करने से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। इसलिए रामानुजन ने कैम्ब्रिज जाने से इंकार कर दिया। लेकिन हार्डी ने प्रयास जारी रखा और मद्रास जा रहे एक युवा प्राध्यापक नेविल को रामानुजन को मनाकर कैम्ब्रिज लाने के लिए कहा। नेविल और अन्य लोगों के प्रयासों से रामानुजन कैम्ब्रिज जाने के लिए तैयार हो गए। हार्डी ने रामानुजन के लिए केम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में व्यवस्था की।

जब रामानुजन ट्रिनिटी कॉलेज गए तो उस समय पी.सी. महलानोबिस [प्रसिद्ध भारतीय सांख्यिकी विद] भी वहां पढ़ रहे थे। महलानोबिस रामानुजन से मिलने के लिए उनके कमरे में पहुंचे। उस समय बहुत ठंड थी। रामानुजन अंगीठी के पास बैठे थे। महलानोबिस ने उन्हें पूछा कि रात को ठंड तो नहीं लगी। रामानुजन ने बताया कि रात को कोट पहनकर सोने के बाद भी उन्हें ठंड लगी। उन्होंने पूरी रात चादर ओढ़ कर काटी थी क्योंकि उन्हें कम्बल दिखाई नहीं दिया। महलानोबिस उनके शयन कक्ष में गए और पाया कि वहां पर कई कम्बल हैं। अंग्रेजी शैली के अनुसार कम्बलों को बिछाकर उनके ऊपर चादर ढकी हुई थी। जब महलानोबिस ने इस अंग्रेजी शैली के बारे में बताया तो रामानुजन को अफ़सोस हुआ। वे अज्ञानतावश रात भर चादर ओढ़कर ठंड से ठिठुरते रहे। रामानुजन को भोजन के लिए भी कठिन परेशानी से गुजरना पड़ा। शुरू में वे भारत से दक्षिण भारतीय खाद्य सामग्री मंगाते थे लेकिन बाद में वह बंद हो गयी। उस समय प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था। रामानुजन सिर्फ चावल, नमक और नीबू-पानी से अपना जीवन निर्वाह करने लगे। शाकाहारी होने के कारण वे अपना भोजन खुद पकाते थे। उनका स्वभाव शांत और जीवनचर्या शुद्ध सात्विक थी।

रामानुजन ने गणित में सब कुछ अपने बलबूते पर ही किया। इन्हें गणित की कुछ शाखाओं का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था पर कुछ क्षेत्रों में उनका कोई सानी नहीं था। इसलिए हार्डी ने रामानुजन को पढ़ाने का जिम्मा स्वयं लिया। स्वयं हार्डी ने इस बात को स्वीकार किया कि जितना उन्होंने रामानुजन को सिखाया उससे कहीं ज्यादा रामानुजन ने उन्हें सिखाया। सन् 1916 में रामानुजन ने केम्ब्रिज से बी. एस-सी. की उपाधि प्राप्त की।
रामानुजन और हार्डी के कार्यों ने शुरू से ही महत्वपूर्ण परिणाम दिये। सन् 1917 से ही रामानुजन बीमार रहने लगे थे और अधिकांश समय बिस्तर पर ही रहते थे। इंग्लैण्ड की कड़ी सर्दी और कड़ा परिश्रम उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हुई। इनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा और उनमें तपेदिक के लक्षण दिखाई देने लगे। इधर उनके लेख उच्चकोटि की पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे थे। सन् 1918 में, एक ही वर्ष में रामानुजन को कैम्ब्रिज फिलोसॉफिकल सोसायटी, रॉयल सोसायटी तथा ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज तीनों का फेलो चुन गया। इससे रामानुजन का उत्साह और भी अधिक बढ़ा और वह शोध कार्य में जोर-शोर से जुट गए। सन् 1919 में स्वास्थ बहुत खराब होने की वजह से उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा।
रामानुजन की स्मरण शक्ति गजब की थी। वे विलक्षण प्रतिभा के धनी और एक महान गणितज्ञ थे। एक बहुत ही प्रसिद्ध घटना है। जब रामानुजन अस्पताल में भर्ती थे तो डॉ. हार्डी उन्हें देखने आए। डॉ. हार्डी जिस टैक्सी में आए थे उसका नम्बर था 1729 । यह संख्या डॉ. हार्डी को अशुभ लगी क्योंकि 1729 = 7 x 13 x 19 और इंग्लैण्ड के लोग 13 को एक अशुभ संख्या मानते हैं। परंतु रामानुजन ने कहा कि यह तो एक अद्भुत संख्या है। यह वह सबसे छोटी संख्या है, जिसे हम दो घन संख्याओं के जोड़ से दो तरीके में व्यक्त कर सकते हैं। (1729 = 12x12x12 + 1x1x1,और 1729 = 10x10x10 + 9x9x9)।

सन् 1903 से 1914 के बीच, कैम्ब्रिज जाने से पहले रामानुजन अपनी `नोट बुक्स’ में तीन हज़ार से ज्यादा प्रमेय लिख चुके थे। उन्होंने ज्यादातर अपने निष्कर्ष ही दिए थे और उनकी उपपत्ति नहीं दी। 1967 में प्रोफेसर ब्रूस सी. बर्नाड्ट को जब ‘रामानुजन नोट बुक्स’ दिखाई गयी तो उस समय उन्होंने इस पुस्तक में कोई रुचि नहीं ली। बाद में उन्हें लगा कि वह रामानुजन के प्रमेयों की उत्पत्तियाँ दे सकते हैं। प्रोफेसर बर्नाड्ट ने अपना पूरा ध्यान रामानुजन की पुस्तकों के शोध में लगा दिया। उन्होंने रामानुजन की तीन पुस्तकों पर 20 वर्षों तक शोध किया।

1919 में इंग्लैण्ड से वापस आने के पश्चात् रामानुजन 3 महीने मद्रास, 2 महीने कोदमंडी और 4 महीने कुंभकोणम में रहे। उनकी पत्नी ने उनकी बहुत सेवा की। पति-पत्नी का साथ बहुत कम समय तक रहा। रामानुजन के इंग्लैंड जाने से पूर्व वे एक वर्ष तक उनके साथ रही। उन्हें माँ होने का सुख भी प्राप्त नहीं हुआ। इससे पहले ही 26 अप्रैल 1920 को 32 वर्ष 4 महीने और 4 दिन की अल्पायु में रामानुजन इस दुनिया से चले गए।

Arya Samaj की फेसबुक वॉल से : 22.12.2017

Wednesday, November 28, 2018

दो गिद्ध.....

दो गिद्ध.....
वह तस्वीर याद है आपको? इसे नाम दिया गया था"The vulture and the little girl "। इस तस्वीर में एक गिद्ध भूख से मर रही एक छोटी लड़की के मरने का इंतज़ार कर रहा है । इसे एक साउथ अफ्रीकन फोटो जर्नलिस्ट केविन कार्टर ने 1993 में  सूडान के अकाल के समय खींचा था और इसके लिए उन्हें पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । लेकिन कार्टर इस सम्मान का आनंद कुछ ही दिन उठा पाए क्योंकि कुछ महीनों बाद 33 वर्ष की आयु में उन्होंने अवसाद से आत्महत्या कर ली । क्या हुआ?
दरअसल जब वे इस सम्मान का जश्न मना रहे थे तो सारी दुनिया में प्रमुख चैनल और नेटवर्क पर इसकी  चर्चा हो रही थी । उनका अवसाद तब शुरू हुआ जब एक 'फोन इंटरव्यू' के दौरान किसी ने पूछा कि उस लड़की का क्या हुआ? कार्टर ने कहा कि वह देखने के लिए रुके नहीं क्यों कि उन्हें फ्लाइट पकड़नी थी । इस पर उस व्यक्ति ने कहा " मैं आपको बता रहा हूँ कि उस दिन वहां दो गिद्ध थे जिसमें एक के हाथ में कैमरा था।"
इस कथन के भाव ने कार्टर को इतना विचलित कर दिया कि वे अवसाद में चले गये और अंत में आत्महत्या कर ली ।
किसी भी स्थिति में कुछ हासिल करने से पहले  मानवता आनी ही चाहिए ।
कार्टर आज जीवित होते अगर वे उस बच्ची को उठा कर यूनाईटेड नेशन्स के फीडिंग सेंटर तक पहुँचा देते जहाँ पहुँचने की वह कोशिश कर रही थी ।

*कभी मौका पड़े तो ऐसी परिस्थितियों में  फोटो  खींचने की जगह उनकी मदद करने की कोशिश करना*

Saturday, October 6, 2018

 By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 7 Oct 7:33 AM

शोषितों की आवाज थे रामनरेश कुशवाहा

राम नरेश जी का जन्म देवरिया जिले के लार उपनगर के कोइरी टोला निवासी बेनी माधव के घर  1929 मे  पैदा हुए |उनकी प्राथमिक शिक्षा गाँव से ही प्राप्त कर ,स्नातक साहित्य रत्न किया |इनकी पत्नी का नाम समराजी देवी था |उन्होंने पढाई के दौरान अंग्रेजो के खिलाफ आन्दोलन छेड दिया और कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर भारत छोड़ो आन्दोलन मे सक्रिय भूमिका निभाई |राम नरेश जी  ने कई विद्यालयों मे अध्यापन का काम भी किया जैसे -नौतनवा इंटर कॉलेज ,श्री सिंघेश्वरी इंटर कॉलेज तेतरी बाज़ार सिद्दार्थ नगर,पूर्व इंटर कालेज कडसरवा आदि , वे पूरी जिन्दगी समाज के अतिपिछडो और शोषितों की लड़ाई लड़ते रहे | 
जननायक रामनरेश जी मे शुरू से ही देश के लिए कुछ करने की तमन्ना रही |वे जुझारु प्रवृति के व्यक्ति थे, आपातकाल के दौरान वह देवरिया जेल मे 19 माह तक बंद रहे |पहली बार उन्होंने विधान सभा क्षेत्र सलेमपुर से सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप मे 1957 मे चुनाव लडा ,इसी पार्टी से 1961मे भी चुनाव लडे , 1967 मे लोकसभा सलेमपुर के लिए प्रत्याशी बनाया और 1969 मे सीयर विधान सभा से प्रत्याशी बनाया गया लेकिन वह चुनाव नही जीत पाए |जनता पार्टी से उन्होंने 1977मे  लोकसभा का चुनाव सलेमपुर से लडा ,जिसमे सफलता मिल गयी |1982 मे राज्यसभा सदस्य चुने गये |इसके बाद वह चौधरी चरण सिंह की पार्टी मे शामिल हो गये और 1985 मे लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष तथा 1987 मे लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने |1998 मे वह समाजवादी पार्टी मे शामिल हो गये और 2005मे मुलायम सिंह की सरकार मे उन्हें सेनानी कल्याण परिषद् का चेयरमैन व कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला |
कुशवाहा जी का साहित्य से काफी लगाव था |उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन भी किया |उन्होंने बटवारा (खण्ड काव्य ),कामचरित मानस ,खंड खंड पाखंड ,देवासुर संग्राम ,पूर्वांचल मे प्रथम स्वाधीनता संग्राम और सोहनपुर की लड़ाई ,पिछडो का  आरक्षण, कहीं पर निगाहे कहीं पर निशाना ,ई कुल खेलिया हम हू खेलब ,विकल्प ,रमदेइया, स्वाहा,समता की खोज मारे भवन त रोके कौन ,भीष्मप्रतिज्ञा तथा किसान मजदूर और सामाजिक समस्याओ पर लेखन किया | 
राजनीति का गुरु और कलम का यह सिपाही 7 अक्टूबर सन 2013 को इस संसार को अलविदा कह गया | 

Sunday, August 26, 2018

भविष्य की दुनिया क्या कनेक्टेड होगी?

भविष्य की दुनिया क्या कनेक्टेड होगी?

लोग भविष्य कनेक्टेड, संचार, तकनीक
भविष्य की पीढ़ियां जिस दुनिया में रहेंगी वे हर लिहाज़ से ज़्यादा कनेक्टेड (जुड़ी हुई) होंगी. लेखक टेड विलियम्स पूछते हैं कि क्या ये एक जुड़ी हुई दुनिया यानी कनेक्टेड वर्ल्ड कैसे हमारे समाज और हमें बदल देगी.
"तर्कशील व्यक्ति दुनिया के हिसाब से खुद को ढाल लेता है जबकि अविवेकी व्यक्ति दुनिया को अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करता है. इसलिए जितनी भी तरक्की है वह अविवेकी मनुष्य पर निर्भर है." जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
तकनीक के हर बड़े क़दम ने मानव समाज को व्यापक रूप में बदला है. इसलिए ही हम जानते हैं कि वे बड़े तकनीकी बदलाव थे.
भले ही हम उन्हें तब महसूस नहीं कर पाते हैं जब वे घटित हो रहे होते हैं.

निजी विचार और समूह

जेबीएस हेल्डेन के ब्रह्मांड के बारे में दिए गए प्रसिद्ध वक्तव्य में कहा जाए तो, 'भविष्य आपकी कल्पना से अलग नहीं होगा बल्कि जितनी आप कल्पना कर सकते हैं उससे बहुत अलग होगा.'
हम सामाजिक प्राणी हैं लेकिन भिन्न होने के ख़तरे तब से कम हुए हैं जब से व्यक्तिवाद हमारे समाज और स्वयं हम में बड़ी ताक़त बनता चला गया है.
फ़्यूचर सिटी
Image captionभविष्य की दुनिया ज़्यादा कनेक्टेड होगी
नवीन तकनीक एक बड़ा कारण है. दो शक्तिशाली बल अब तेज़ी से समाज और व्यक्ति के बीच के समीकरण बदल रहे हैं.
व्यक्तिवाद का केंद्रीकरण और एक बंटे हुए समाज से अस्थिर और समस्तरीय समाज के प्रति निष्ठा का हस्तांतरण.
अपने शानदार उपन्यास 'केट्स क्रेडल' में कर्न वोनॉट ने एक ऐसे धर्म की खोज की जो मानवीय रिश्तों को 'कारासेज़' या फ़िर 'ग्रेनफॉलूंस' में परिभाषित करता है.
कारासेज़ का मतलब है लोगों के बीच में सच्चा संपर्क जो स्वतः स्थापित होता है और ग्रेनफॉलूंस ऐसे रिश्ते हैं जो अधिकतर असत्य होते हैं यानि जन्म, रंग, स्थान आदि के आधार पर बनते हैं.
बहुत से धर्म और राष्ट्र, जैसे कि सच्चे समस्तरीय सामाजिक समूह, साझा विचारों के रूप में शुरु हुए लेकिन जैसे-जैसे ये संस्थाएं बढ़ी और बदली लोगों के बीच की सहमतियाँ धूमिल होती चली गईं.
अमरीका में उदार ईसाई, कट्टर ईसाइयों के मुकाबले उदार नास्तिकों से ज़्यादा मिलते-जुलते हैं.
तो फ़िर अमरीकी ईसाई कौन हैं? लेकिन ब्लूग्रास का एक प्रशंसक हमेसा ब्लूग्रास का ही संगीत पसंद करेगा भले ही वो टैनेसी में रहता है या ट्यूनीसिया में.
जो विचार आधिकारिक सीमाओं में क़ैद नहीं होते वे ही अपने अनुयायियों की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं. जबकि राष्ट्र और धर्म बहुत ही कम लचीले होते हैं.
लेकिन यदि हम अपनी निष्ठाओं को अधिक व्यक्तिकत रुचियों जैसे कि पर्यावरण की राजनीति, बंदूकों पर मालिकाना हक़, पुराने फर्नीचर को ख़रीदना या फिर अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नज़र रखना आदि की ओर करेंगे तो हम देशीय या अन्य सीमाओं में नया राजनीतिक गठबंधन बना लेंगे.

स्वास्थ्य क्रांति

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Thursday, January 4, 2018

प्रोफेसर और प्रधान सेवक

एक प्रोफेसर ने प्रोफेसरी झाड़ते हुए प्रधानसेवक से कहा-महोदय, आप शिक्षा के बजट में कटौती करके पढ़ाई का स्तर गिरा रहे हैं।
प्रधानसेवक ने सुंदर सा जवाब दिया- अरे मूर्ख प्रोफेसर, जब एक अनपढ़ प्रधानसेवक अनपढ़ों की सेना लेकर सवा सौ करोड़ देशवासियों को पढ़ा सकता है तो तू झूठमूठ का इतना खर्चा क्यों कराना चाहता है। घर जा और मन की बात सुन।
तू मत भूल कि मैंने कहा था कि यह किसानों की सरकार है तो उन्हें पिसाब पीना पड़ा। मैंने यह कभी नहीं कहा कि यह सरकार शिक्षकों की (शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध) सरकार है। अब सोच कि तेरा क्या होगा???
प्रोफेसर : (लगभग गिड़गिड़ाने की मुद्रा में) अरे साहब, कम से कम 7th pay ही दे देते।
प्रधानसेवक : अरे मूर्ख, तू दिन गिन, कि तेरी यही salery कितने दिन मिलती है। अगर मैं 2024 में जीत गया तो तुम सब भूखों मरोगे।
प्रोफेसर: तो आप क्या करेंगे?
प्रधानसेवक : सब private करूँगा।
प्रोफेसर : तो सीधे-सीधे कहिए कि देश को प्राइवेट कंपनियों को बेंच देंगे।
प्रधानसेवक: अब तू देशद्रोह कर रहा है। तू भूल रहा है कि इसी भाषा पर up में एक शिक्षक suspend हुआ है।
प्रोफेसर : मैं तोआपकी नीतियों की आलोचना कर रहा हूँ।
प्रधानसेवक : मैं ही देश हूँ। देश मुझसे शुरू होकर मेरे भक्तों पर खत्म हो जाता है।