Monday, June 20, 2022

योग केवल आसन ही नहीं, उसमें होती हैं ये 8 चीज़ें

 

International Yoga Day: योग केवल आसन ही नहीं, उसमें होती हैं ये 8 चीज़ें

योग

आठवाँ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को दुनिया भर में मनाया जाएगा.

21 जून को पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है. पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया था.

योग दिवस को मनाए जाने का प्रस्ताव सबसे पहले भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने 27 सितंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के अपने संबोधन में किया था.

इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने इस बारे में एक प्रस्ताव लाकर 21 जून को इंटरनेशनल योग डे मनाने की घोषणा की.

योग के आठ अंगों में से एक है प्राणायाम जिसमें श्वसन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. योग के सभी आठों अंगों को मिलाकर अष्टांग योग कहते हैं, जानिए क्या हैं ये आठों अंग.

योग का अर्थ है जुड़ना. मन को वश में करना और वृत्तियों से मुक्त होना योग है.

सदियों पहले महर्षि पतंजलि ने मुक्ति के आठ द्वार बताए, जिन्हें हम 'अष्टांग योग' कहते हैं.

मौजूदा दौर में हम अष्टांग योग के कुछ अंगों जैसे आसन, प्राणायाम और ध्यान को ही जान पाए हैं.

आज हम आपको पतंजलि योग के आठों अंगों के बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं.

1.

योग

यम शब्द से ही बना है संयम यानी मर्यादित आचरण-व्यवहार, यम के पांच अंग हैं.

अहिंसा- मन, वचन और कर्म से किसी को कष्ट न पहुंचाना

सत्य - भ्रम से परे सच का ज्ञान

अस्तेय- नकल या चोरी का अभाव

ब्रह्मचर्य- चेतना को ब्रह्म तत्व से एकाकार रखना

अपरिग्रहसंग्रह या संचय का अभाव

2.

योग

नियम के भी पाँच अंग हैं.

शौच- आंतरिक और बाहरी सफ़ाई

संतोष- जो है उसे ही पर्याप्त मानना

तप- स्वयं को तपाकर असत को जलाना

स्वाध्याय- आत्मा-परमात्मा को समझने के लिए अध्ययन

ईश्वर प्रणिधान- ईश्वर के प्रति समर्पण, अहं का त्याग

3.

योग

योग का वो अंग जो मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा मुखरता से प्रकट है, वो है आसन.

आसन महज शारीरिक कसरत या लचीलापन नहीं है.

महर्षि पतंजलि इसकी अवस्था को बताते हुए कहा था- स्थिरं सुखम् आसन. म्यानी शरीर की स्थिरता और मन के तल पर आनंद और सहजता ही आसन है. अगर आप इन दो स्थिति को नहीं पाते, तो आप आसन में नहीं है।

4.

योग

शरीर में सूक्ष्म प्राण शक्ति को विस्तार देने की साधना है- प्राणायाम.

योग याज्ञवल्क्य संहिता में प्राण (आती साँस) और अपान (जाती साँस) के प्रति सजगता के संयोग को प्राणायाम बताया है.

साँस की डोर से हम तन-मन दोनों को साध सकते हैं.

हठयोग ग्रंथ कहता है 'चले वाते, चलं चित्तं'यानी तेज़ साँस होने से हमारा चित्त-मन तेज़ होता है और साँस को लयबद्ध करने से चित्त में शांति आती है.

साँस के प्रति सजगता से सिद्धार्थ गौतम ने बुद्धत्व को साधा. वहीं, गुरु नानक ने एक-एक साँस की पहरेदारी को परमात्मा से जुड़ने की कुंजी बताया.

5.

योग

हमारी 11 इंद्रियां हैं- यानी पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और एक मन.

प्रत्याहार शब्द प्रति और आहार से बना है यानी इंद्रियां जिन विषयों को भोग रही हैं यानी उनका आहार कर रही हैं, वहां से उसे मूल स्रोत (स्व) की तरफ़ मोड़ना.

ज्ञानीजन कहते हैं हर चीज़ जो सक्रिय है वो ऊर्जा की खपत करती है.

इंद्रियों की निरंतर दौड़ हमें ऊर्जाहीन करती है. इंद्रियों की दौड़ को त्याग कर मगन रहना प्रत्याहार है.

6.

योग

'देश बन्ध: चितस्य धारणा'यानी चित्त का एक जगह टिक जाना धारणा है.

इन दिनों अक्सर धारणा अभ्यास को हम ध्यान समझ लेते हैं. धारणा मन को एकाग्र करने की साधना है.

इसके कई स्वरुप हैं जैसे प्राण-धारणा यानी साँस पर फ़ोकस, ज्योति या बिंदु त्राटक आदि.

धारणा दरअसल ध्यान से पहले की स्थिति है. धारणा मन के विचारों की बाढ़ को नियंत्रित कर हमें शांति देती है

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https://www.bbc.com/hindi/india-57544617