(24-09-2017)
अभी नवरात्र चल
रहा है और सभी दिशाओं से लाऊडस्पीकरों के माध्यम से भक्ति संगीत की भाँति-भाँति की
धाराएँ बह रही हैं। नौ दिन तक रोज सुबह-शाम आरती का महाअभियान भी इसमें सम्मिलित
है। संयोग से मुसलमानों का त्यौहार ‘मुहर्रम’ भी इसी दौरान पड़ गया है। नवरात्र सबसे अधिक धूमधाम से पश्चिम बंगाल में मनाया
जाता है। अभी वहाँ की ममता बनर्जी सरकार द्वारा दिया गया एक आदेश विवाद का विषय बन
गया कि ‘मुहर्रम’ के दिन दुर्गा विसर्जन
नहीं होगा ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके। इस पर तत्काल हिंदूवादी कलकत्ता हाईकोर्ट
गए और हाईकोर्ट ने उस दिन भी विसर्जन की अनुमति दी और पुलिस को दोनों धर्मों के कार्यक्रम
के लिए अलग-अलग रास्ते तय करने का आदेश दिया। इसे देखकर मुझे ‘खरगोश और तीतर’ का झगड़ा याद आ गया जिसमें बिल्ली पूरी
रोटी खा जाती है। अगर दोनों धर्मों के लोग सचमुच अपने-अपने ईश्वर और अल्लाह के प्रति
पूजाभाव से ऐसा कुछ कर रहे हों तो ऐसा प्रश्न उठना ही ‘बिल्ली’ को रोटी खाने का न्योता देना है। साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया कि हम धर्म
और धार्मिक आयोजनों के नाम पर केवल और केवल दिखावा (आडंबर) कर रहे हैं, जिस पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए। एक तो ऐसे आदेश की स्थिति नहीं आनी चाहिए, दूसरा कि यदि ऐसा आदेश किसी ने राजनीतिक स्वार्थ के लिए निकाल ही दिया हो
तो हिंदू और मुस्लिम दोनों संगठनों की ओर से तत्काल एक पत्र जारी होना चाहिए था कि
दोनों जुलूस एक ही गली से निकाले जाएँगे और एक पत्ता तक नहीं खड़खड़ाएगा। अभी भी समय
है, उन्हें ऐसा करके अपनी परिपक्वता (सांप्रदायिक सौहार्द
नहीं- यह शब्द ही गलत है) की मिसाल खड़ी करनी चाहिए। सोचिए दो धर्मों के लोग जिस दिन
अपने-अपने ईश्वर/अल्लाह की पूजा-अर्चना (बंदगी) कर रहे हैं, उस
दिन भी वे कोई हिंसक काम कर सकते हैं? और अगर वे ऐसा करते हैं
तो सचमुच ईश्वर के भक्त या अल्लाह के बंदे हैं? एक समय में इन
दोनों में से कोई एक बात ही सही होगी। या तो वे हिंसा नहीं करेंगे, या फिर वे ईश्वर के भक्त या अल्लाह के बंदे नहीं हैं। ये वही लालची और
मूर्ख ‘खरगोश और तीतर’ हैं जिनकी रोटी
बिल्ली के रूप में राजनीतिक दल खा रहे हैं।
अगर ऐसा माहौल बना
कि उस दिन भी हम एक-दूसरे पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं तो आप मान लीजिए कि हमारा
धर्म शत-प्रतिशत दिखावा बन चुका है। यह कैसे हो सकता है कि आप चले थे ईश्वर/अल्लाह
को खुश करने और रास्ते में मार-काट करने लगे। और वह भी इस कारण से दूसरा वाला भी वही
काम कर रहा था। होना तो यह चाहिए कि एक ही गली से दोनों ओर से दोनों धर्मों के लोगों
का जुलूस निकलता और हिंदू लोग मुसलमानों को आदाम-आदाब तथा मुसलमान लोग हिंदुओं को नमस्कार-नमस्कार
करते निकल जाते। जरा सोचिए कि उस दृश्य को टी.वी. पर देखकर बाकी दुनिया को कैसा महसूस
होता। हम गर्व से सीना तानकर कहते कि ये हैं परिपक्व लोग जो धर्म को धर्म की तरह
मानते हैं और समझते हैं। अगर हम ऐसा नहीं कर रहे हैं तो यह हमारी असफलता है। जो
ऐसा सोच या कर नहीं सकता वह धार्मिक नहीं है। उसके द्वारा किए जाने वाले किसी भी धार्मिक
आयोजन पर हमेशा के लिए पाबंदी लगा देनी चाहिए।
आज अगर हम ऐसा नहीं
कर पा रहे हैं तो मेरी समझ से उसका कारण एक ही है कि हम ईश्वर या अल्लाह से बहुत दूर
चले गए हैं, या वह हमसे बहुत दूर चला गया है। मैं पिछले
तीन-चार सालों से ईश्वर से कुछ प्रश्न करता आ रहा हूँ, और मैंने
यह भी सोचा है कि जब तक इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल जाते,
मैं तो पूजा-पाठ करने से रहा। ये प्रश्न दोनों धर्मों के लोगों के सामने हैं। इनका
उद्देश्य ईश्वर/अल्लाह का अपमान करना या किसी की आस्था पर चोट पहुँचाना नहीं है, बल्कि सबको एक बार सोचने के लिए विवश करना है।
हिंदू धर्म में
33 कोटि देवी-देवता माने गए हैं, जिनमें गणेश, शिव, विष्णु, लक्ष्मी, दुर्गा, हनुमान (सबके साथ ‘जी’) आदि 05-10 की पूजा मुख्य रूप से
होती ही रहती है। हिंदू त्यौहार जुलाई-अगस्त में नागपंचमी से आरंभ होने के बाद
अगले साल के मार्च-अप्रैल में होली तक चलते रहते हैं। इन्हीं लोगों से जुड़े त्यौहार
बारी-बारी से आते हैं और सभी त्यौहारों में सभी देवी-देवताओं का किसी-न-किसी रूप
में पूजन-अर्चन चलता रहता है। इनके श्लोक, आरती, भक्तिगीत आदि को ध्यानपूर्वक सुनकर समझने की कोशिश की जाए तो पता चलता है
कि जिस भी देवी-देवता की वंदना की जा रही है वह बहुत ही शक्तिशाली है। अपने भक्तों
की वह सदा सुनता है, जब भी हम उसे दुःख में पुकारते हैं, वह दौड़ा चला आता/आती है। जब भी पृथ्वी पर पाप बढ़ता है, वह अवतार लेता है और पापियों का नाश करता/करती है.......आदि।
घुमा-फिराकर ऐसी
भी बातें हम देवताओं के बारे में करते या सोचते हैं,
लेकिन कभी यह नहीं सोचते कि क्या सचमुच ऐसा है???? दुर्गा
देवी का अंतिम बार अवतार ‘महिषासुर’ का
वध करने के लिए हुआ। उसके बाद वे कितनी बार पापियों का नाश करने के लिए सार्वजनिक
रूप से अवतरित हुईं? हनुमान जी ने राम के साथ मिलकर कई
राक्षसों का वध किया। उसके बाद वे कहाँ चले गए? यही प्रश्न
अन्य देवी-देवताओं के बारे में भी पूछे जाने चाहिए। यदि वे हैं तो आकर अपना कर्म
(पापियों का नाश और भक्तों की रक्षा) क्यों नहीं करते? अगर
नहीं करते तो हर साल उनके नाम पर इतना प्रदर्शन और प्रदूषण करने का क्या मतलब। ऐसे
कुछ प्रश्न जब मैं पंडे-पुजारियों से करता हूँ तो वे कहते हैं कि तुम नास्तिक हो, तुम नहीं समझोगे अथवा वे अदृश्य रूप से आते हैं,
हमें पता नहीं चलता .... आदि-आदि। या यह भट्ठयुग चल रहा है जब पाप सिर से ऊपर निकल
जाएगा तो जरूर आएँगे....।
मैं इतना बड़ा
भक्त तो हूँ नहीं कि इन कोरी काल्पनिक बातों को मान लूँ। जिन प्रश्नों के आधार पर
इन देवी-देवताओं के होने पर मैं अविश्वास करता हूँ उन्हें आपके भी समक्ष रखना
चाहूँगा एक बार विचार जरूर करें। अगर ये देवी-देवता सचमुच इतने शक्तिशाली हैं और
हमारी रक्षा करने के लिए तत्पर रहते हैं तो जब मध्यकाल में मुस्लिम शासकों ने
आक्रमण किया, मंदिरों को बर्बाद किया, मुर्तियों को तोड़ा-उठाकर ले गए और पुजारियों का कत्लेआम किया, उनके बहू-बेटियों की इज्जत लूटी, तब इन
देवी-देवताओं ने तत्काल अवतार लेकर उन्हें सबक क्यों नहीं सिखाया????
यदि यह आपको पुरानी
बात लगती हो तो अभी के बारे में सोचिए कि पाकिस्तान और बंग्लादेश में लाखों
हिंदुओं का कत्ल हुआ, उनमें से बहुतों की बहू-बेटियों से जबरन
धर्म-परिवर्तन कराकर शादी की गई तब ये लोग कहाँ थे??? अगर यह
बात भी विदेश की लग रही हो तो 20-25 साल पहले इसी देश में 05-07 लाख कश्मीरी पंडितों
के घर तबाह करके लूट लिए गए उन्हें मार-मारकर भगाया गया, तब
भी इनमें से कोई भी देवी-देवता उनकी रक्षा के लिए आगे क्यों नहीं आया???
ऐसे बहुत से
उदाहरण हैं। अब आप खुद से प्रश्न कीजिए कि अगर ऐसी परिस्थितियों में ये
देवी-देवता अपने भक्तों या अपने लोगों की रक्षा के लिए आगे नहीं आए तो आपको क्यों
लगता है कि आपके ऊपर विपत्ति आएगी तो आपकी रक्षा के लिए ये प्रकट हो जाएँगे??? यदि आपको लगता है कि ये प्राकृतिक समस्याओं को रोक सकते हैं? तो पूछिए अपने शिवजी से उत्तराखंड में आए जल-प्रलय को उन्होंने क्यों
नहीं रोका? या उसकी सूचना किसी भी रूप में अपने भक्तों को
क्यों नहीं दी?, जबकि उसमें मरने वाले एक-डेढ़ लाख लोगों में
लगभग 90% शिवभक्त थे?
अगर इन प्रश्नों
का उत्तर नहीं मिलने के बावजूद आपको अपनी भक्ति पर उतना ही भरोसा है तो याद रखिए
अभी भी कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन जीना पड़ रहा है।
सभी भक्त माता रानी के सामने व्रत रखकर आज से ही अनशन पर बैठ जाएँ कि जब तक उनकी
समस्या हल नहीं हो जाती हम अपना व्रत नहीं तोड़ेंगे। जब बिना किसी प्रमाण के आप हर
साल अनुष्ठान करते ही हैं तो एक बार यह भी करके देखें। या तो आपकी भक्ति प्रमाणित
हो जाएगी या आपकी भक्ति खत्म हो जाएगी। कम-से-कम एक निष्कर्ष मिलेगा।
मुसलमान भी
बड़े-बड़े लाऊडस्पीकर लगाकर रोज पाँच बार ‘अल्ला-हो-अकबर’ करते हैं। इस्लाम में लिखा है- इसलिए करने का नियम है तो कीजिए, लेकिन एक बार जाँच तो लेना चाहिए कि आपकी यह आवाज अल्लाह तक पहुँच भी रही
है या नहीं। पिछले एक दशक से इस्लामिक जगत अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है।
अफगानिस्तान के बाद इराक और सीरिया में जिहाद और अल्लाह के ही नाम पर मुसलमानों के
हाथ से ही मुसलमान मारे जा रहे हैं। बड़े आराम में आप आतंकवादियों को कह देते हैं
कि वे भटके हुए नौजवान हैं। आपको यह नहीं दिखाई दे रहा है कि इन भटके हुए हुए
नौजवानों के कारण लाखों मुस्लिम मारे गए और लाखों का वर्तमान और भविष्य बर्बाद हो
गया। अगर वे भटके हुए हैं, तो उन्हें रास्ता कौन दिखाएगा? मुस्लिम समाज को नेक रास्ता दिखाने का जिम्मा मुल्ले-मौलावियों के पास है, तो वे यह रास्ता दिखाते क्यों नहीं? किस बात का वे
इंतजार कर रहे हैं? आखिर अल्लाह चुपचाप बैठकर क्या देख रहा
है? या वह सोया हुआ है क्या?
अभी रोहिंग्या
मुसलमानों का मामला चल रहा है। बेचारे, बेघर होने
के बाद सर छुपाने के लिए छत तो छोड़िए पाँव रखने के लिए जमीन नहीं मिल रही है। इस मुद्दे
पर मौलावी अल्लाह से विशेष दर्खवास्त क्यों नहीं करते??? सभी
देशों मौलावी एक निश्चित दिन से मस्जिदों में अल्लाह-हो-अकबर करते हुए अनशन पर क्यों
नहीं बैठ जाते कि हे अल्लाह, जब तक आप हमारी फरियाद नहीं सुनेंगे
हम आपको बुलाते ही रहेंगे। या रोजे में ही यह व्रत ले लेते जब तक अल्लाह हमारी फरियाद
नहीं सुन लेता- (भटके हुए नौजवानों को सदबुद्धि और बेघर मुसलमानों को छत नहीं देता)
हम रोजा नहीं तोड़ेंगे। फिर या तो अल्लाह को आप सबकी फरियाद सुननी पड़ती या आप अल्लाह
के बंदे हो जाते। फिर वही प्रश्न आपसे भी है, कि अगर रोहिंग्या
मुसलमानों पर संकट आने पर अल्लाह चुप है तो आपको क्यों लगता है कि आपके ऊपर संकट आएगा
तो वह आपकी रक्षा करेगा। स्वयं से एक बार प्रश्न जरूर करें।
अभी तक अरबों प्रकाशवर्ष
का ब्रह्मांड देख लेने के बावजूद पृथ्वी ही एकमात्र ऐसे ग्रह के रूप में प्राप्त हुई
है जिस पर जीवन है। इस पृथ्वी पर भी लाखों प्रकार के जीवधारी हैं जिनमें केवल मनुष्य
ही सोच सकता है। यह बात हमें बहुत ही ख़ास (special) बनाती है। यदि हमें प्रकृति ने सोचने की क्षमता दी है तो कुछ विशेष प्रयोजन
के लिए दिया होगा। इस क्षमता का प्रयोग अप्रमाणिक भक्ति के लिए करने के बजाए उस प्रयोजन
को पाने की ओर उन्मुख होना ही जीवन की सफलता है। इस संसार में बहुत सारे विषय जानने
के लिए पड़े हुए हैं। ‘ईश्वर/ख़ुदा’ भी ऐसा
ही एक विषय है। इसलिए मेरा विनम्र अनुरोध है कि ऐसे भक्त बनने से पहले एक बार तर्कपूर्वक
विचार जरूर करें।
धर्म के अंधभक्त और कुछ प्रश्न-2धर्म के अंधभक्त और कुछ प्रश्न-3
डा० धनजी प्रसाद जी, आपका लेख बड़ा शक्तिशाली है। जो भी इस लेख को ध्यान से पढ़ेगा वह सोचने पर मजबूर होगा कि क्या सत् है और क्या असत् है। लगता है धर्म कुछ लोगों को अध्यात्म की ओर अवश्य ले जाता है परंतु अधिकांश लोग धर्म की आड़ में चाहे अनचाहे न्यूनाधिक मात्रा में किसी न किसी राजनीतिक या सामाजिक षढ़यंत्र का हिस्सा ही बन जाते हैं। इस धर्मान्धता के गर्त से कैसे बाहर निकलें? इसी धर्मान्धता ने बापू आसाराम, रामरहीम, फ़लाहारी जैसे बाबाओं को जन्म दिया। वैचारिक मंथन एकमात्र उपाय लगता है। एक गली से एक साथ दो पंथों के प्रेमपूर्वक निकलने का विचार समाज में हमारे सह-अस्तित्व के भाव की परीक्षा है और उस परीक्षा में सफलता पाने की कटिबद्धता हमारे धार्मिक होने का प्रमाण हो सकता है। लेख चिंतन की सम्यक् दिशा में एक सशक्त कड़ी है। आशा है अधिक से अधिक लोग इस लेख को पढ़कर तर्कपूर्वक सोचने पर मजबूर होंगे। - डा- सुरेन्द्र गंभीर
ReplyDeleteधन्यवाद। यदि कुछ लोग भी इसे पढ़कर एक बार तर्क की ओर चलते हैं तो यह हमारी सामूहिक जीत होगी, उस षड़यंत्र से...
Deleteप्रश्न गंभीर है. भक्त सब बीमार हैं. धर्म और भगवान से इलाज के आशा रखते है जिनके कारण इतनी विकृति पैदा हो रही है
ReplyDeleteसही बात
Deleteलाजवाब लेख। आज नेताओं और मौकापरस्तों का मोहरा बनने से पहले धार्मिक एवं भक्त लोगों को तर्क की कसौटी पर एक बार फिर से चिंतन-मनन करने की अति आवश्यकता है कि भगवान और अल्लाह ने धार्मिक पवित्र ग्रंथों से बाहर आ कर सच में किसी की मदद की है क्या या कर सकते हैं क्या??
ReplyDeleteधन्यवाद।
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