लघुकथा-9
गुरु आ चेला
गुरु आ चेला
मुंसीजी- आजकाल्ह लइकन क बिकास एहीसे नइखे होत कि ऊ गुरू के
गुरू नइखन स समझत। एगो हमनी के परंपरा रहे। चेला लोग गुरुअन के दंडवत करसजा आ गोड़ भी
दबावसजा। तब जाके असली चेला बन पावसजा।
बिद्यारथी- आप पइसा प काम करेवाला एगो अध्यापक बानी। आपके पढ़े-पढ़ावे
खातिर सरकार बकायदे पइसा देतिया। एतने ना, सरकार जेतना पइसा देतिया ओकर एक
चउथाइयो आप काम नइखीं करत। तबो आप अपना के गुरु कहवावल चाहतानी। कुछ त सरम करीं।
गुरु और शिष्य
अध्यापक- आजकल के लड़कों का विकास इसीलिए नहीं हो रहा है कि
वे गुरु को गुरु नहीं समझते हैं। एक हमारी परंपरा थी। शिष्य लोग गुरुओं को दंडवत करते
थे और पैर भी दबाते थे। तब जाकर वास्तविक शिष्य बन पाते थे।
विद्यार्थी- आप पैसे पर काम करने वाले एक अध्यापक हैं। आपको
पढ़ने-पढ़ाने के लिए सरकार बकायदे पैसे दे रही है। इतना ही नहीं, सरकार
जितने पैसे दे रही है उसका एक चौथाई भी आप काम नहीं कर रहे हैं। फिर भी आप अपने को
गुरु कहलवाना चाहते हैं। कुछ तो शर्म कीजिए।
No comments:
Post a Comment