Wednesday, October 11, 2017

आदमी क भविष्य (मनुष्य का भविष्य)

लघुकथा-4
आदमी क भविष्य
एगो छोट लइका आपन बाबूजी से पुछलें- बाबूजी, आदमी आज धरती के बहुत बड़हन सक्ति बा। ओकर आज हर चीज पर अधिकार बा। ऊ जेवना चीज के जइसे चाहे, ओइसे परयोग कर सकेला और कर रहल बा। लेकिन जवना गति से उ परकिर्ति आ पराक्रितिक संसाधन क दोहन कर रहल बा, ओकरा के देखके रउवाँ के अदमी का भविष्य का लागता?
ओकर बाबूजी बैग्यानिक जबाब दिहलें- बेटा, आदमी अपने पएदा नइखे भइल। ओकरा के परकिर्तिए बनवले बिया। जेकरा के तू पराक्रितिक संसाधन कह रहल बाड़S, असली ऊ करोड़न साल से धरती में सड़Sके बनल चीज बा, जवन लाखन साल तक बेकारे परल रहल ह। तब परकिर्ति सोचलSसिहS कि एकर उपयोग कइसे कइल जाई। तब ओकरा मन में बिचार आइल कि एगो अइसन प्राणी बनाईं, जवन एह कुल्हनी के खपाS घले आ आज हमनीकS ऊहे कर रहल बानीSजा।
लइका- त अदमी क भविस्य का होई?
बाबूजी- कुछऊ ना बेटा, जइसे हमनीकS जरूरत परला प कवनो सामान लियावेनीजाS आ काम खतम होते कह कि ओके फेंक देनीजाS, चाहे खतम कर देनीजाS ओइसहीं हमनियोकS जरूरत खतम होते कहS कि परकिर्ति हमनी के नस्ट क दी।
लइका- का एहसे बचे क कवनो उपाय नइखे?
बाबूजी- बा, अगर हमनीकS परकिर्ति खातिर आपन जरूरत खतम भइला से पहिले कवनो अउरी काम खातिर अपना के उपयोगी बना लिहल जाव त बच सकेनीजा। नाहिं तS, पराक्रितिक संसाधन के खतम होत कहीं कि हमनियोके खतम हो जाएके।
मनुष्य का भविष्य
एक बच्चे ने अपने पिता से पूछा- पिताजी, मनुष्य आज पृथ्वी की बहुत बड़ी शक्ति है। उसका आज हर चीज पर अधिकार है। वह जिस चीज का जैसे चाहे वैसे प्रयोग कर सकता है और कर रहा है। लेकिन जिस गति से वह प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है, उसे देखकर आपको मनुष्य का भविष्य क्या लगता है?
पिता ने वैज्ञानिक जवाब दिया- बेटे, मनुष्य स्वयं नहीं पैदा हुआ है। उसे प्रकृति ने बनाया है। जिसे तुम प्राकृतिक संसाधन कह रहे हो, दरअसल वे करोड़ों वर्ष से पृथ्वी में सड़कर बनी हुई चीजें हैं, जो लाखों से साल से बेकार पड़ी हुई थीं। फिर प्रकृति ने सोचा कि इनका कैसे उपयोग किया जाए? तब उसके मन में विचार आया कि एक ऐसा प्राणी बनाएँ जो इन सबका खपत कर डाले और आज हम वही कर रहे हैं।
बच्चा- तो मनुष्य का भविष्य क्या होगा?
पिता- कुछ नहीं बेटे, जैसे हम जरूरत पड़ने पर कोई सामान लाते हैं और काम खत्म होते ही उसे फेंक देते हैं, या नष्ट कर डालते हैं, वैसे ही हमारी जरूरत खत्म होते ही प्रकृति हमें नष्ट कर डालेगी।
बच्चा- क्या इससे बचने का कोई उपाय नहीं है?

पिता- है, अगर हम प्रकृति के लिए अपनी जरूरत खत्म होने से पहले किसी और काम के लिए अपने को उपयोगी बना लें तो बच सकते हैं, नहीं तो प्राकृतिक संसाधनों के खत्म होते-होते हम भी खत्म हो जाएँगे।

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